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Articles by डेविड रोपर

पुनः पराजित

अपने धर्मोपदेश लेखन के दिनों में मैंने कई रविवार की सुबह खुद को एक महत्वहीन क्रीमी की तरह महसूस किया l उससे पहले के सप्ताह में, मैं एक सर्वोत्तम पति, पिता, या मित्र नहीं था l  मुझे लगा कि इससे पहले कि परमेश्वर मुझे फिर से इस्तेमाल करे मुझे सही जीवन जीने का ट्रैक रिकॉर्ड(पिछली उपलब्द्धियाँ) स्थापित करना होगा l इसलिए मैं धर्मोपदेश द्वारा सबसे अच्छा करने की प्रतिज्ञा की और मैं आने वाले सप्ताह को बेहतर ढंग से जीने की कोशिश की l

यह सही दृष्टिकोण नहीं था l गलातियों 3 में यह कहा गया है कि परमेश्वर लगातार हमें अपनी आत्मा देता है और एक मुफ्त उपहार के रूप में हमारे द्वारा शक्तिशाली रूप से काम करता है - इसलिए नहीं कि हमने कुछ किया है या इसके लायक हैं l

अब्राहम का जीवन इसे दर्शाता है l कई बार वह एक पति के रूप में असफल रहा l उदाहरण के लिए, उसने दो बार खुद को बचाने के लिए झूठ बोलकर सारा का जीवन खतरे में डाल दिया (उत्पत्ति 12:10-20; 20:1–18) l फिर भी उसका विश्वास “धार्मिकता गिनी गई ” (गलातियों 3:6) l अब्राहम ने अपनी असफलताओं के बावजूद खुद को परमेश्वर के हाथों में डाल दिया, और परमेश्वर ने उसके वंश के द्वारा संसार में उद्धार लाने के लिए उसका उपयोग किया l

बुरा बर्ताव करने का कोई औचित्य नहीं है l यीशु ने हमें आज्ञाकारिता में उसका अनुसरण करने को कहा है, और वह ऐसा करने के लिए साधन देता है l एक कठोर, पश्चाताप नहीं किया हुआ हृदय हमारे लिए उसके उद्देश्यों को हमेशा बाधित करेगा, लेकिन हमें इस्तेमाल करने की उसकी क्षमता अच्छे व्यवहार के लंबे नमूने पर निर्भर नहीं करती है l यह पूरी तरह से हमारे द्वारा काम करने की परमेश्वर की इच्छा पर आधारित है जैसे हम हैं : अनुग्रह से बचाए हुए और अनुग्रह द्वारा उन्नति करते हुए l आपको उसके अनुग्रह के लिए मेहनत नहीं करनी होगी – यह मुफ्त है l

फसल तक विश्वासयोग्य

एक स्त्री को मैं जानता हूँ जिसने एक स्थानीय पार्क में एक कार्यक्रम आयोजित की और पड़ोस के बच्चों को भाग लेने के लिए आमंत्रित किया l वह अपने पड़ोसियों के साथ अपने विश्वास को साझा करने के अवसर के विषय उत्तेजित थी l

उसने अपने तीन नाती-पोते और दो हाई स्कूल विद्यार्थियों को उसकी सहायता करने के लिए तैयार किया, उन्हें काम दिया, कई खेल और दूसरी गतिविधियों की योजना बनायी, भोजन तैयार किया, बच्चों को बताने के लिए यीशु के विषय बाइबल की एक कहानी तैयार की, और उनके इकट्ठे होने का इंतज़ार किया l

पहले दिन एक भी बच्चा नहीं आया l या दूसरे दिन l या तीसरे दिन l फिर भी, हर दिन मेरे मित्र ने अपने नाती-पोते और सहयोगियों के साथ उस दिन की गतिविधियों को पूरा किया l

चौथे दिन, उसने एक परिवार को निकट ही पिकनिक मानते देखा और बच्चों को खेल में भाग लेने के लिए आमंत्रित की l एक छोटी लड़की आई, आनंद में भाग ली, उनके साथ भोजन की, और यीशु के विषय कहानी सुनी l शायद अभी से सालों बाद वह उसे याद करेगी l किसे मालुम है कि परिणाम क्या होगा? परमेश्वर, गलतियों की किताब से, हमें उत्साहित करता है, “हम भले काम करने में साहस न छोड़े, क्योंकि यदि हम ढीले न हों तो ठीक समय पर कटनी काटेंगे l इसलिए जहां तक अवसर मिले हम सब के साथ भलाई करे” (6:9-10) l

संख्या अथवा सफलता के दृश्य मानकों की चिंता न करें l हमारा काम है कि वह हमें जो काम देता है उसके प्रति विश्वासयोग्य रहें और फिर परिणाम उस पर छोड़ दें l परमेश्वर परिणाम निर्धारित करता है l

मुर्खता करना

 

मेरा सबसे अपमानजनक अनुभव वह दिन था जब मैंने अपनी पचासवीं वर्षगाँठ पर एक सेमिनरी के संकाय, छात्रों और दोस्तों को संबोधित किया था l मैं व्याख्यान के लिए भाषण-मंच पर अपने हाथ से लिखित नोट्स के साथ पहुंचा और एक विशाल भीड़ को देखा, लेकिन मेरी नज़र सामने की पंक्ति में बैठे प्रतिष्ठित प्रोफेसरों पर पड़ी, जो अकादमिक गाउन पहने हुए थे और बहुत गंभीर दिख रहे थे l मेरा होश उड़ गया l मेरा मुँह सूख गया और मेरे मस्तिष्क से उसका सम्बन्ध टूट गया l मैंने पहले कुछ वाक्य पढ़े और फिर मैं उसे तत्काल सुधारना शुरू किया l चूँकि मुझे पता नहीं था कि मैं अपने व्याख्यान में कहाँ पर था, मैंने निरर्थक रूप से पृष्ठों को पलटना शुरू कर दिया, और साथ में बकवास करने लगा जिससे सभी चकित हो गए l किसी तरह मैंने इसे पूरा किया, अपनी कुर्सी पर लौट आया, और फर्श पर एक टक देखने लगा l मैं मरना चाहता था l

हालाँकि, मैंने यह सीखा कि अपमान एक अच्छी बात हो सकती है अगर यह विनम्रता की ओर ले जाए, क्योंकि वह परमेश्वर का दिल खोलनेवाली कुंजी है l शास्त्र कहता है “परमेश्वर अभिमानियों का विरोध करता है, पर दीनों पर अनुग्रह करता है” (याकूब 4:6) l वह अनुग्रह के साथ विनम्रता दिखाता है l स्वयं परमेश्वर ने कहा, “मैं उसी की ओर दृष्टि करूँगा जो दीन और खेदित मन का हो, और मेरा वचन सुनकर थरथराता हो” (यशायाह 66:2) l जब हम सब खुद को परमेश्वर के सामने नम्र दीन करते हैं, वह हमें शिरोमणि करता है (याकूब 4:10) l

अपमान और शर्म हमें परमेश्वर के पास ला सकता है कि वह हमें आकार दे सके l जब हम दीन होते हैं, हम परमेश्वर के हाथों में गिरते हैं l

प्रभु के सामने नाचना

कई साल पहले, मेरी पत्नी और मैं एक छोटे से चर्च में गए जहां आराधना के दौरान एक स्त्री गलियारे में नाचने लगी l जल्द ही दूसरे उसके साथ जुड़ गए l कैरोलिन और मैंने एक-दूसरे को देखा और हमारे बीच एक अनकहा समझौता हुआ : “मैं नहीं!” हम ऐसे चर्च परम्पराओं से आते हैं जो एक गंभीर रीतिरिवाज़ का पक्षधर है, और यह दूसरी प्रकार की आराधना हमारी आरामदेह स्थिति(comfort zone) के कहीं परे थी l

लेकिन यदि मरियम की “बर्बादी” के बारे में मरकुस की कहानी का कुछ भी मतलब है, तो यह सुझाव देता है कि यीशु के लिए हमारा प्यार खुद को उन तरीकों से व्यक्त कर सकता है जो दूसरों को असहज लगते हैं (मरकुस 14:1-9) l मरियम के अभिषेक में एक साल की मजदूरी शामिल थी l यह एक “नासमझ” कार्य था जिसने शिष्यों के तिरस्कार को आमंत्रित किया l मरकुस उनकी प्रतिक्रिया को समझाने के लिए जिस शब्द का उपयोग करता है उसका अर्थ  “सूंघना/सूंघ कर लेना” और तुच्छ समझना और मज़ाक है l यीशु की प्रतिक्रिया से डरकर मरियम घबरा गयी होगी l लेकिन उसने उसकी भक्ति के कार्य की प्रशंसा की और अपने खुद के शिष्यों के विरुद्ध उसका बचाव किया, क्योंकि यीशु ने उस प्रेम को देखा जिसने उसके कार्य को प्रेरित किया, बावजूद इसके कि उसके कार्य के अव्यवहारिक स्वभाव पर कुछ लोग क्या कहेंगे l उसने कहा, “उसे छोड़ दो; उसे क्यों सताते हो? उस ने तो मेरे साथ भलाई की है” (पद.6) l

अलग-अलग प्रकार की आराधना – अनौपचारिक, औपचारिक, शांत, विपुल – यीशु के लिए प्रेम के एक ईमानदार उद्गार का प्रतिनिधित्व करती है l वह सभी आराधना के योग्य है जो प्रेम के हृदय से निकलती है l

आराम से कर सकते हैं

मेरे पिता और मैं पेड़ों को काटते थे और दो मुठ वाले आरा से उन्हें नाप में काटते थे l युवा और ऊर्जावान होने के नाते, मैंने आरी को काटने के लिए मजबूर करने की कोशिश की l “आराम से कर सकते हो,” मेरे पिता कहते थे l “आरी को काम करने दो l”
मैं फिलिपिन्स में पॉल के शब्दों के विषय सोचता हूँ : “यह परमेश्वर ही है जो आप में काम करता है” (2:13) l आराम से कर सकते हैं l उसे हमें बदलने का काम करने दें l
सी.एस. ल्युईस ने कहा कि मसीह ने जो कहा था उसे पढ़ने और करने की तुलना में विकास कहीं अधिक है l उन्होंने समझाया, “एक वास्तविक व्यक्ति, मसीह, . . . आपके लिए कार्य कर रहा है . . . धीरे-धीरे आपको स्थायी रूप से  . . . एक नए छोटे मसीह में बदल रहा है, एक प्राणी जो . . . उसकी सामर्थ्य, आनंद, ज्ञान और अनंतता में भागीदारी करता है l
परमेश्वर आज उस प्रक्रिया को पूरा कर रहा है l यीशु के चरणों में बैठें और जो कुछ वह कहना चाहता है उसे ग्रहण कर लें  l प्रार्थना करें l “अपने आप को परमेश्वर के प्रेम में बनाए रखें” (यहूदा 1:21), खुद को दिन भर याद दिलाते रहें कि आप उसके हैं l इस आश्वासन में विश्राम करें कि वह धीरे-धीरे आपको बदल रहा है l
“लेकिन क्या हमें धार्मिकता की भूख और प्यास नहीं लगनी चाहिये? आप पूछेंगे l मन में कल्पना करें कि एक छोटा बच्चा एक ऊंचे ताखे पर से एक उपहार उठाने का प्रयास कर रहा है, प्राप्त करने की इच्छा के साथ उसकी आँखें चमक रही हैं l उसके पिता उसकी इच्छा को भांपते हुए, उपहार को उतार कर उसे दे देता है l
कार्य परमेश्वर का है; आनंद हमारा है l आराम से कर सकते हैं l हम किसी दिन वहां पहुँचेंगे l

असफल लकड़हारा

एक साल जब मैं कॉलेज में था, मैं जलाऊ लकड़ी काटता, बेचता, और पहुंचाता था l यह एक कठिन काम था, इसलिए मेरे पास 2 राजा 6 की कहानी में अभागे लकड़हारे के लिए सहानुभूति है l  

एलिशा का नबियों का समूह समृद्ध हुआ था, और उनके मिलने की जगह बहुत छोटी हो गयी थी l किसी ने सुझाव दिया कि वे जंगल में जाएँ, लकड़ी का कुंदा काटें, और अपनी सुविधाओं को बढ़ाएं l एलिशा सहमत हुआ और कार्यकर्ताओं के साथ गया l काम ठीक चल रहा था जब तक कि किसी की कुल्हाड़ी पानी में न गिर गयी (पद.5) l 

कुछ लोगों ने सुझाव दिया है कि एलिशा केवल अपनी छड़ी से पानी में टटोलता रहा जब तक कि उसने पता न लगा लिया और फिर उसे खींच कर निकाल लिया l हालाँकि, यह शायद ही ध्यान देने योग्य होगा l नहीं, वह एक आश्चर्यकर्म था : परमेश्वर के हाथों ने उस कुल्हाड़ी को गति प्रदान की और वह तैरने लगा ताकि वह व्यक्ति उसे प्राप्त कर सके (पद.6-7) l 

इस साधारण आश्चर्यकर्म में एक गहरा सच है : परमेश्वर जीवन की छोटी चीजों की परवाह  करता है – खोई हुए कुल्हाड़ियाँ, खोयी हुयी चाबी, खोए हुए चश्मे, खोए हुए फोन – छोटी चीजें जो हमारे लिए खीज का कारण बनती हैं l जो खो जाता है, उन सभी को वह बहाल नहीं करता है, परन्तु वह समझता है और हमारे संकट में हमें आराम देता है l 

हमारे उद्धार के आश्वासन के आगे, परमेश्वर की देखभाल की निश्चयता ज़रूरी है l इसके बिना हम असंख्य चिंताओं के संपर्क में संसार में अकेला महसूस करेंगे, l यह जानना अच्छा है कि वह परवाह करता है और हमारी हानि से दुखित होता है – चाहे वे कितनी ही छोटी हों l हमारी चिंताएं उसकी चिंताएं हैं l 

गरजनेवाला चूहा

कई साल पहले मैंने और मेरे बेटों ने पहाड़ों पर एक जंगल में कैम्पिंग करके कुछ दिन गुज़ारे l 

यह स्थान एक टाइगर रिज़र्व था, लेकिन हमने किसी भी अप्रिय मुठभेड़ से बचने के लिए यथासंभव सुरक्षित रहने की कोशिश की l 

एक शाम, आधी रात में, मैंने सुना मानो रोहित, मेरा बेटा अपने डेरे से बाहर निकलने की कोशिश कर रहा है l मैंने अपनी टोर्च उठाकर उसे चालु कर दिया, इस अपेक्षा से कि वह वास्तविक खतरे में है l 

वहाँ, अपने कूबड़ पर सीधा बैठा और हवा में अपने पंजे लहराता हुआ, लगभग 4 इंच “ऊँचा एक चूहा था l उसने मजबूती से अपने दाँतों से रोहित की टोपी पकड़े हुए था l उस छोटे प्राणी ने पूरी ताकत से रोहित की टोपी खींचकर उसके सिर से उतार ली l जब मैं हँसा, वह चूहा टोपी गिराकर रफूचक्कर हो गया l हम वापस अपने तम्बू में चले गए l मैं, हालाँकि, पूरी तरह जागा रहा, और सो न सका और एक और लुटेरा – शैतान – के बारे में सोचता रहा l 

शैतान द्वारा यीशु की परीक्षा पर विचार करें (मत्ती 4:1-11) l उसने पवित्रशास्त्र से परीक्षाओं का सामना किया l प्रत्येक उत्तर के साथ, यीशु ने खुद को याद दिलाया कि परमेश्वर ने इस मुद्दे पर बात की थी और इसलिए वह अवज्ञा नहीं करेगा l इससे शैतान भाग गया l 

हालाँकि शैतान हमें खा जाना चाहता है, यह याद रखना अच्छा है कि वह उस छोटे क्रितंक(कुतरने वाला जानवर) की तरह रचा गया प्राणी है l यूहन्ना ने कहा, “जो [हममें] है वह उस से जो संसार में है बड़ा है” ( 1 यूहन्ना 4:4) l 

मिट्टी का पुराना बरतन

मैंने वर्षों में कई पुराने मिट्टी के बरतन प्राप्त किये हैं l मेरा पसंदीदा बर्तन अब्राहम के समय के एक जगह से खुदाई में निकला था l यह मेरे घर की कम से कम एक वस्तु है जिसकी उम्र मुझसे अधिक है! देखने के लिए इसमें ज्यादा कुछ नहीं है : दाग लगा हुआ, फूटा हुआ, खंडित, और जिसे साफ़ करने की ज़रूरत है l मैं इसे याद दिलाने के लिए रखता हूँ कि मैं मिट्टी से बना केवल एक मनुष्य हूँ l हालाँकि नाजुक और कमजोर, मेरे अन्दर  एक अनमोल कीमती खजाना है – यीशु l हमारे पास यह खजाना [यीशु] मिट्टी के बरतनों में रखा है” (2 कुरिन्थियों 4:7) l 

पौलुस जारी रखता है : “हम चारों ओर से क्लेश तो भोगते हैं, पर संकट में नहीं पड़ते; निरुपाय तो हैं, पर निराश नहीं होते; सताए तो जाते हैं, पर त्यागे नहीं जाते; गिराए तो जाते हैं, पर नष्ट नहीं होते” (पद.8-9) l चारों ओर से क्लेश भोगना, निरुपाय होना, सताया जाना, गिराया जाना l ये वे दबाव हैं जिन्हें उस बरतन को बर्दाश्त करना है l संकट में नहीं पड़ते, निराशा नहीं होते, त्यागा नहीं जाते, नष्ट न होते l ये हम में यीशु की प्रतिकार शक्ति के प्रभाव हैं l 

“हम यीशु की मृत्यु को अपनी देह में हर समय लिए फिरते हैं” (पद.10) l यह वह आचरण है जो यीशु की विशेषता है जो हर दिन खुद के प्रति मर गया l और यह वह दृष्टिकोण है जो हमारी पहचान बन सकती है – जो हम में रहता है उसकी पूरी क्षमता पर भरोसा करते हुए, आत्म-प्रयास के प्रति मरने की इच्छा l 

“कि यीशु का जीवन भी हमारी देह में प्रगट हो” (पद.10) l यही परिणाम है : एक पुराने मिट्टी के बर्तन में दिखाई देने वाली यीशु की सुन्दरता l 

एक अभिकल्पित कमी

एक प्राकृतिक झरना है जो यरूशलेम शहर के पूर्व की ओर से निकलता है l प्राचीन काल में यह शहर की एकमात्र जलापूर्ति थी और दीवारों के बाहर स्थित थी l इस प्रकार यह यरूशलेम की सबसे बड़ी भेद्यता (vulnerability) का बिंदु था l खुले झरने का मतलब था कि शहर, अन्यथा अभेद्य, आत्मसमर्पण करने के लिए मजबूर किया जा सकता था यदि एक हमलावर झरने की दिशा बदल देता या उसे बाँध देता l

राजा हिजकिय्याह ने शहर में 1,750 फीट ठोस चट्टान के अन्दर से एक सुरंग बनवाकर, झरना को नगर के जलाशय में पहुंचाकर इस परेशानी को दूर किया (देखें 2 राजा 20:20; 2 इतिहास 32:2-4) l लेकिन इन सब में, हिजकिय्याह ने “उसके कर्ता को स्मरण नहीं किया, जिसने प्राचीनकाल से उसको ठहरा रखा था[उसकी योजना बनायी थी]” (यशायाह 22:11) l क्या योजना बनायी थी?

यरूशलेम शहर को परमेश्वर ने इस तरह “नियोजित” किया था कि उसकी पानी की आपूर्ति असुरक्षित थी l दीवार के बाहर झरना एक निरंतर ताकीद था कि शहर के निवासियों को अपने उद्धार के लिए पूरी तरह से परमेश्वर पर निर्भर होना चाहिए l

क्या यह हो सकता है कि हमारी कमियाँ हमारे भले के लिए मौजूद हों? निसंदेह, प्रेरित पौलुस ने कहा कि वह अपनी कमजोरियों में “घमण्ड” करेगा, क्योंकि इस कमजोरी के द्वारा ही यीशु की सुन्दरता और सामर्थ्य उस में दिखाई देती थी (2 कुरिन्थियों 12:9-10) l क्या तब हम प्रत्येक कमजोरी को एक उपहार के रूप में मान सकते हैं जो परमेश्वर को हमारी सामर्थ्य के रूप में प्रकट करता है?